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मुझे थाम लो, ओ जीवन !

Parichay
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दूर ……सुनसान ………

निर्जन, बंजर मैदान

ऊँचे, पथरीले चट्टानों पर खड़ा मैं,

पीछे मुड़कर पुकारता –

मुझे बुलालो ओ बचपन !

अपना-पहचाना –

कहाँ गया वह  गाँव पुराना ?

छोटी सी वह राह तलईया ,

लहरों के संग ताल मिलाकर –

झिर –झिर बहती पुरवईया I

प्यार भरे अपनों के मन –

मुझे बांध लो ओ बंधन !

उजड़ गए बस्ती और घर ,

ढह गई दीवारें और छप्पर ,

दिखने लगे –

मकान, दुकान और बाजार ,

चुभने लगा –

कटीला शहर ,

मुझे छुपा लो ओ आंगन !

कहाँ जाऊं , क्या पाऊँ ?

इधर –उधर ढूँढ रहा हूँ ,

तितर –बितर,

हाथ बढ़ाकर –

मुझे थाम लो ,

ओ जीवन !

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